पहली बात – जब किसी को लगे कि हम बहुत दुःखी हैं, तो अपनी स्थिति से थोड़ा सा नीचे की स्थिति के लोगों की तरफ देखने से दुःख दूर हो जायेगा। दूसरी बात यह है – यदि कोई समझता है कि हमारे ऊपर तो दुःख का पहाड़ ही आ गिरा है, तो उसे विचार करना चाहिए कि देवकी, वसुदेव, कौशल्या, उर्मिला, याशोदा, नन्दराय, धृतराष्ट्र, गांधारी, कुन्ती, भीष्म, द्रोपदी, जनक, सुनैना, सीता, सुभद्रा, उत्तरा, उग्रसेन, सुदामा तथा स्वतन्त्रता संग्राम में जिनके पुत्र, पौत्र, पति, भाई आदि निर्दयता से मारे गए थे, उनके दुःख से क्या तुम्हारा दुःख अधिक है? तीसरी बात यह है कि जिनकी सन्ताने अथवा पति मदिरा पान अथवा अन्य बुरी आदतों- (लतों) में फंसे हुए हैं, उनके दुःख से क्या तुम्हारा दुःख अधिक है? चौथी बात-जिनके पुत्र माता-पिता के साथ शत्रु से भी अधिक बुरा व्यवहार करते हैं, उनका दुःख तुम्हारे दुख से क्या कम है? इन उपरोक्त चार प्रकार के उदाहरणों से यदि कोई व्यक्ति विचार करेगा, तो उसका दुःख अवश्य दूर हो जायेगा, टेंसन मुक्त रहेगा सुखी जीवन व्यतीत करने लगेगा।
पांचवी बात यदि कोई चाहता है कि परमानेन्ट (सदैव) सुख की स्थिति बनी रहे, तो उसे अध्यात्म विद्या जिसे वेदान्त कहते हैं, उसका अध्ययन किसी तत्त्वज्ञानी महात्मा के समीप रह कर करना चाहिए। जिसको पढ़ने से सभी समस्याओं का अन्त सदैव के लिए हो जाता है।
छठी बात – प्रारब्ध, होनी, भाग्य, नियति तथा पूर्व जन्मों में किये गये – दुष्कर्मो का फल समझ लेने से भी दुःख कम हो जाता है
कोउ न काहू सुख दुख कर दाता । निज कृत करम भोग सब भ्राता ।।